बाबा फरीद की माँ ने कहा बेटा घर में शक्कर नहीं है। बाज़ार से शक्कर ले आ। बाबा फरीद जी ने पूछा, माँ कितनी शक्कर ले आऊँ? माँ ने कहा, एक पाव ही काफी है।
बाबा फरीद परमात्मा के ध्यान में ऐसे बैठे कि शक्कर लाना ही भूल गये और सारी रात बैठे ही रह गये। माँ ने भी उन्हें ध्यान से उठाना उचित न समझा और दरवाज़ा बन्द करके सो गई। फरीद जी सारी रात बैठे रहे सुबह हुई माँ ने दरवाज़ा खोलना चाहा,दरवाज़ा खुले ही नहीं। पूरी बाहर आँगन शक्कर से भरा पड़ा था और शक्कर दरवाज़े की झीरी में से कमरे में आने लगी थी। कठिनता से दरवाज़ा खोला।
बाबा फरीद जी समाधी से उठे तो माँ ने कहा मैने तो एक पाव शक्कर लाने को कहा था, इतनी सारी शक्कर क्या करनी थी। बाबा फरीद जी ने जवाब दिया माँ मैने तो परमात्मा से पाव के लिये ही कहा था, लेकिन मैं क्या करूँ भगवान का पाव ही बहुत बड़ा है, ज़रूर उसने तो अपने हिसाब से पाव ही दी होगी।
परमात्मा का हम जीवों के साथ इतना प्यार है वह हमारी हर माँग को पूरा करता है।हमारी जरूरतों से कई गुना देता है हमें! पर ये तो मैं हिं नाशुक्रा हूँ जो किसी भी बात के लिये अपने ईशवर का शुक्र नहीं करता धन्यवाद नही करता!
ईश्वर के प्यार का अपने शिष्य से, प्रिय सेवक से, सौ गुणा अधिक होता है। हो सके तो कुछ पल अपने बनाने वाले के साथ जरूर बिताओ जब केवल वो आपको देखे आप उससे बात करो सच जानो जो पाव की इच्छा ले के बैठे हो इतना हो जायेगा रख नही पाओगे।
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