Thursday, 19 April 2018

017 - सतगुरु अपना उत्तराधिकारी कैसे चुनते है ?


जब तीसरे गुरु, गुरु अमरदास जी ने अपना उत्तराधिकारी चुनने का मन बनाया तो उनके शिष्यों में से बहुत-से ऐसे थे जिन्हें विश्वास था कि शायद गुरु साहिब उन पर दया करके उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दें। पर जैसा कि आम तौर पर ऐसी स्थिति में होता है, गुरु साहिब ने सबको इम्तिहान की कसौटी पर रख दिया।
हुक्म दिया कि अमुक मैदान में अपनी-अपनी मिट्टी लाकर चबूतरे बनाओ।

      सेवकों ने चबूतरे बनाये। आपने कहा, ये ठीक नही हैं, फिर बनाओ। लोगों ने फिर बनाये। आपने कहा, ये भी ठीक नही हैं। लोगों ने तीसरी बार बनाये। आपने कहा यह जगह ठीक नही है, अपनी-अपनी मिट्टी उस मैदान में ले जाओ और फिर बनाओ। लोगों ने फिर बनाये, लेकिन आपने पसंद न किये। जब आपके सतगुरु अंगद देव जी ने आपको अपना उत्तराधिकारी बनाया था तो उस समय आप काफी बड़ी उम्र के थे। इस वक़्त गुरु साहिब लगभग 95 साल के थे। जब चार-पाँच बार इस तरह हुआ, तब लोगों ने सोचा कि सत्तर साल के बाद आदमी की अक़्ल क़ायम नही रहती। गुरु साहिब की उम्र तो लगभग 95 साल है। सो यह सोचकर बहुत से लोग हट गये। जो लोग रहे, उनसे गुरु साहिब चबूतरे बनवाते रहे और गिरवाते रहे

      आखिर कब तक! एक-एक करके सभी छोड़ गये। केवल एक रामदास जी रह गये, जो चबूतरे बनाते और गुरु साहिब के पसंद न करने पर गिरा देते। दूसरे शिष्य जो आपको गुरु जी के आदेश का पालन करते देख रहे थे, आपका मज़ाक उड़ाते हुए कहने लगे कि आप तो सौदाई हैं जो गुरु को प्रसन्न करने के लिए बार-बार चबूतरे बना रहे हैं। रामदास जी ने थोड़ी देर काम रोककर उनसे कहा, भाइयो, सारी दुनिया अंधी है। केवल एक व्यक्ति है, जिसे दिखायी देता है, और वह हैं मेरे सतगुरु। सतगुरु के सिवाय बाकी सारी दुनिया पागल है। इस पर शिष्य कहने लगे कि आप और आपके गुरु दोनों की अक़्ल क़ायम नही है। रामदास जी रो पड़े और बोले कि आप मुझे चाहे जो मर्ज़ी कह लो, लेकिन गुरु साहिब को कुछ न कहो, क्योंकि अगर गुरु साहिब की अक़्ल क़ायम नही तो किसी की भी अक़्ल क़ायम नही है। गुरु साहिब अगर इसी तरह सारी उम्र हुक्म देते रहेंगे, तो रामदास सारी उम्र चबूतरे बनाता रहेगा।

      आपने ख़ुशी-ख़ुशी सत्तर बार चबूतरे बनाये और सत्तर बार गिराये। इस पर गुरु अमरदास जी ने कहा, रामदास! अब तुम भी चबूतरे बनाना छोड़ दो। मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ क्योंकि एक तुम ही हो जिसने बिना कुछ कहे पूरे समर्पण से मेरा हुक्म माना है। गुरु साहिब चुबूतरे क्यों बनवाते और गिरवाते थे? केवल इसलिए कि जिस ह्रदय में नाम रखना है और जहाँ से करोड़ों जीवों को फायदा उठाना है, वह ह्रदय भी किसी क़ाबिल होना चाहिए। रामदास जी का दृढ़ प्रेम देखकर आख़िर गुरु अमरदास जी ने उनको अपनी छाती से लगा लिया और रूहानी दौलत से भरपूर कर दिया।

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