एक बार का ज़िक्र है, एक महात्मा ने कुछ भजन-बन्दगी की। एक दिन भजन-बंदगी के बाद उसने घोषणा की कि जो मेरे दर्शन करेगा वह सीधा स्वर्ग जायेगा। वह पालकी में बैठकर जा रहा था और स्वर्ग के इच्छुक बेशुमार
लोग उसके दर्शन करने आ रहे थे। रास्ते में एक मस्त फ़क़ीर बैठा हुआ था, शोर सुनकर उसने पूछा कि यह शोर कैसा है? किसी ने कहा कि एक महात्मा आ रहा है, उसकी घोषणा है कि जो उसके दर्शन करेगा, सीधा स्वर्ग को जायेगा।
लोग उसके दर्शन करने आ रहे थे। रास्ते में एक मस्त फ़क़ीर बैठा हुआ था, शोर सुनकर उसने पूछा कि यह शोर कैसा है? किसी ने कहा कि एक महात्मा आ रहा है, उसकी घोषणा है कि जो उसके दर्शन करेगा, सीधा स्वर्ग को जायेगा।
इतना सुनना था कि फ़क़ीर सड़क की ओर पीठ करके, मुँह ढककर बैठ गया। जब स्वर्ग पहुँचानेवाले महात्मा की पालकी वहाँ पहुँची तो वह हैरान रह गया कि यह कौन है जो मुझे देखने के बजाय मुँह ढककर बैठ गया है, जब कि सारी दुनिया मेरे दर्शन के लिए आ रही है। यह सोचकर बोला कि पालकी को खड़ा कर दो। फिर पालकी से उतरकर पूछा, भाई! तूने मुँह क्यों ढका हुआ है? फ़क़ीर ने उत्तर दिया, मैं तेरा मुँह नही देखना चाहता। मुझें जाना है सचखंड को और तू देता है स्वर्ग। मैं तेरा मुँह क्यों देखूँ? तब पालकी वाले महात्मा ने कहा, आज से तू मेरा मुर्शिद है। इसलिए ख्वाजा हाफ़िज़ कहते हैं:-
मैं उसका आशिक हूँ। मुझे मोमिन बनने की ज़रूरत नही। मैं न कुफ़ माँगता हूँ, न जुदाई, न मिलाप।
सच्चे भक़्त परमात्मा से परमात्मा को मांगते हैं, स्वर्ग बैकुंठ नही। संतों का प्रभु से इतना प्रेम होता है कि वे सांसारिक प्रलोभनों से अनासक्त रहते हैं। उन्हें तो प्रभु के मिलाप से ही सच्चा सुख मिलता है।
परमात्मा अंग संग है रग-रग की जानता है उन्हे धोखा मत दो गुरूमुखो की संगती करो ताकि यह मन काबू मे
आ जाये काम,क्रोध,लोभ,मोह,अंहकार से ऊपर उठ सको यह मन जो नित नई ख्वाईशे रखता है एक प्रभु को पाने की ख्वाईश रखे,कहा भी गया है जैसी संगत वैसी रंगत फिर किस गफलत मे हो अगर बुरे लोगो का संग करोगे तो बुराई तुम्हारे मन रूपी घर मे घर कर जायेगी और तुम्हे नित नये कर्मो के जाल मे फसाये रखेगी फल स्वरूप नर्को के जाल मे धकेल देगी। और अगर अच्छे लोगो का संग करोगे तो अच्छाई तुम्हारे इर्द-गिर्द घूमेगी बुराई वहा से खुद ही भाग जायेगी इस लिये सतसंगी लोगो से मेलजोल रखो ताकी तुम्हारे अंदर भी गुरू के प्रति प्रेम व सेवा का भाव पैदा हो। सभी सन्त इस बात का होका देते है
गुरू परमेश्वर ऐको जान - कि गुरू और परमेश्वर एक-दूसरे के पूरक है परमेश्वर गुरू द्वारा ही अपने शब्द हम पर प्रकट करता है और अपने तक पहुचने का रास्ता बताता है अब जीव के हाथ मे कि कौन सा रस्ता चुनता है परमेश्वर तक पहुचने का या आवागमन मे गोते खाने का (विचार करे) .भजन सिमरन अपना प्रमुख अंग बनाये और आवागमन से हमेशा के लिये मुक्त हो जाये .
संत कबीर दास जी की वाणी -
क्या भरोसा देह का , बिनस जात छिन माहिं । सांस – सांस सुमिरन करो , और यतन कछु नाहिं ।
भावार्थ : यहाँ कबीर दास जी जीव को सावधान करते हुए कहते हैं कि इस काया का कोई भरोसा नहीं है , यह तो पल में ही नष्ट हो जाती है , इसलिए हे प्राणी ! हर सांस में प्रभु का सुमिरन करने का नियम धारण कर ले , दूसरा कोई यतन नहीं है ।
अर्थात – मृत्यु तो अकाट्य सत्य है ,इसको कोई रोक नहीं पाया है । यदि समय रहते , इस मानव – पिंड को पाकर भी , जीव आत्म- साक्षात्कार नहीं कर सके तो समझो , मानुष जन्म निष्फल हो गया ।
True..but maan dhoka detha hai ..so we need tounderstand the maan chaal..thsnks for sharing
ReplyDeleteThanks jee..Yes Biggest challenge is to control mind and follow TRUE Guru advice.
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