Thursday, 12 July 2018

029 - हमे मालिक की रजा में क्यों रहना चाहिए ?

एक फकीर अरब मे हज के लिए पैदल निकला। रात हो जाने पर एक गांव मे शाकिर नामक व्यक्ति के दरवाजे पर रूका। शाकिर ने फकीर की खूब सेवा किया। दूसरे दिन शाकिर ने बहुत सारे उपहार दे कर बिदा किया। 

फकीर ने दुआ किया -"खुदा करे तू दिनो दिन बढता ही रहे।"

सुन कर शाकिर हंस पड़ा और कहा -"अरे फकीर! जो है यह भी नही रहने वाला है"। यह सुनकर फकीर चला गया ।

दो वर्ष बाद फकीर फिर शाकिर के घर गया और देखा कि शाकिर का सारा वैभव समाप्त हो गया है। पता चला कि शाकिर अब बगल के गांव मे एक जमींदार के वहा नौकरी करता है। फकीर शाकिर से मिलने गया। शाकिर ने अभाव मे भी फकीर का स्वागत किया। झोपड़ी मे फटी चटाई पर बिठाया । खाने के लिए सूखी रोटी दिया।

दूसरे दिन जाते समय फकीर की आखो मे आसू थे। फकीर कहने लगा  "अल्लाह ये तूने क्या क्रिया?"

शाकिर पुनः हंस पड़ा  और बोला -"फकीर तू क्यो दुखी हो रहा है? महापुरुषो ने कहा है - "खुदा  इन्सान को जिस हाल मे रखे  खुदा को धन्यावाद दे कर खुश रहना चाहिए। समय सदा बदलता रहता है" और सुनो यह भी नही रहने वाला है"।

फकीर सोचने लगा -"मै तो केवल भेष से फकीर हू सच्चा फकीर तो शाकिर तू ही है।"

दो वर्ष बाद फकीर फिर यात्रा पर निकला और शाकिर से मिला तो देख कर हैरान रह गया कि शाकिर तो अब जमींदारो का जमींदार बन गया है। मालूम हुआ कि जमींदार जिसके वहा शाकिर नौकरी करता था वह संतान विहीन था मरते समय अपनी सारी जायदाद शाकिर को दे गया।

फकीर ने शाकिर से कहा - "अच्छा हुआ वो जमाना गुजर गया। अल्लाह करे अब तू ऐसा ही बना रहे।"

यह सुनकर शाकिर फिर हंस पड़ा  और कहने लगा - "फकीर!  अभी भी तेरी नादानी बनी हुई है"।

फकीर ने पूछा क्या यह भी नही रहने वाला है? शाकिर ने उत्तर दिया - *"या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा। कुछ भी रहने वाला नही है। और अगर शाश्वत कुछ है तो वह हैं परमात्मा और इसका अंश आत्मा।"* फकीर चला गया ।

डेढ साल बाद लौटता है तो देखता है कि शाकिर का महल तो है किन्तु कबूतर उसमे गुटरगू कर रहे है। शाकिर कब्रिस्तान मे सो रहा है। बेटियां अपने-अपने घर चली गई है।बूढी पत्नी कोने मे पड़ी है ।

"कह रहा है आसमा यह समा कुछ भी नही।

रो रही है शबनमे नौरंगे जहाँ कुछ भी नही।

जिनके महलों मे हजारो रंग के जलते थे फानूस।
झाड उनके कब्र पर बाकी निशा कुछ भी नही।"

फकीर सोचता है - *"अरे इन्सान ! तू किस बात का अभिमान करता है? क्यो इतराता है? यहा कुछ भी टिकने वाला नही है दुख या सुख कुछ भी सदा नही रहता।"*

धन्य है शाकिर तेरा सत्संग  और धन्य है तुम्हारे सद्गुरु। मै तो झूठा फकीर हू। असली फकीर तो तेरी जिन्दगी है।

अब मै तेरी कब्र देखना चाहता हू। कुछ फूल चढा कर दुआ तो मांग लू।  फकीर कब्र पर जाता है तो देखता है कि शाकिर ने अपनी कब्र पर लिखवा रखा है -  आखिर यह भी तो नही रहेगा

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