Monday, 29 October 2018

038 - हमारे कर्मो का लेखा जोखा कैसे काम करता है ?



जो बोयेगा वही पायेगा , तेरा किया आगे आयेगा .
कुछ वर्ष पूर्व एक बुजुर्ग महिला का देहान्त हो गया ;आस-पड़ोस के-रिश्तेदार सब इकठ्ठा हो गये ! doctor ने  भी Verify कर दिया कि She is deadदाह संस्कार के लिये जब शव को ले जाने लगे तो आश्चर्य की बात वह

Tuesday, 23 October 2018

रूहानी मार्ग की बातें - कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए।







1. कहते हैं कि नाम सिमरन का सही समय है अमृत वेले यानि सुबह 3.00 से  6.00, ये भी कहा जाता है कि सुबह-सुबह अमृत वेले गुरु सतगुरु दया महर की टोकरी  लेकर निकलते हैं और जो-जो भक्त उस वक़्त जागते हैं

उसे दया महर की दृष्टि देते हैं उनकी झोलियाँ भर देते हैं। उसके कई जन्मों के कर्म तक काट देते हैं। उस प्यारे भक्त का भविष्य तक उज्जवल कर देते हैं।





2. मन काल और माया का एजेंट है और हमेशा इसी ताक में रहता है कि जीव को किसी न किसी तरह  परमात्मा की भक्ति से दूर करूँ । यह मित्रता का स्वांग रचाकर शत्रुता करता है । इसलिए इस पर विश्वास करके अभ्यास में गफ़लत नहीं करनी चाहिए ।





3. हजरत ईसा ने कहा हैं : खुश किस्मत हैं वो लोग जो शोक मानते हैं, जिनके अंदर अपने प्रियतम का विरह हैं , उस से मिलने कि तड़प हैं। इस रचना में आकर जो इसके रचयिता के लिए तड़पते हैं, वे सचमुच खुशकिस्मत हैं। भाग्य शाली हैं। संतो की शिक्षा ऐसे भाग्यशाली और खुशकिस्मत जीवो के लिए ही हैं।





4. यदि दर्शन करने हों तो इसके लिए साधु ही श्रेष्ठ हैं और सुमिरन करना चाहें तो गुरु के वचनों को ही चुनें। इस जग से तरना (उद्धार, मुक्ति ) चाहते हैं तो आधीनता ( दीनता, नम्र ) उत्तम है। लेकिन डूबकर मरनेवालों के लिए तो अभिमान ही पर्याप्त है। अर्थात कभी भी अहंकार ( अभिमान ) नहीं करना चाहिए।





5. वह सूरज सबके ही अन्दर है । मगर सिर्फ़ पाक रूहें ही उसे देख पाती हैं । अन्दर जाने पर दिन और रात का फ़र्क नहीं रहता । नानक साहब ने आधी रात के समय अपने पुत्रों से कहा था - सूरज चढा हुआ है । पर उनके पुत्रों को बात समझ में नहीं आयी । तब गुरु साहिब ने यही बात अंगद साहिब से कही । वे अन्दर आना जाना जानते थे । उन्होंने तुरन्त कहा - जी हाँ ! चढा हुआ तो है ।




रूहानी मार्ग की बातें - कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए।


1. कहते हैं कि नाम सिमरन का सही समय है अमृत वेले यानि सुबह 3.00 से  6.00, ये भी कहा जाता है कि सुबह-सुबह अमृत वेले गुरु सतगुरु दया महर की टोकरी  लेकर निकलते हैं और जो-जो भक्त उस वक़्त जागते हैं

Monday, 22 October 2018

037 - आदमी को उस्ताद की क्यों जरूरत होती है ?

 

अंतर में सतगुरु से संपर्क बना रहने पर ही नाम का प्यार जाग्रत होता है। दुनियादारों की संगति से हमारी सुरत फिर इंद्रियों में आ गिरती है। इसलिए गुरु की संगति या सत्संग परम् आवश्यक है। गुरु के प्यार से हमें जगत का मोह छोड़ने और अंदर जाने की शक्त्ति प्राप्त होती है।

Friday, 5 October 2018

036 - ईश्वर की बंदगी में सबर का क्या महतव है ?


बहुत समय पहले की बात है, एक संत हुआ करते थे । उनकी इबादत या भक्ति इस कदर थीं कि वो अपनी धुन में इतने मस्त हो जाते थे की उनको कुछ होश नहीं रहता था । उनकी अदा और चाल इतनी मस्तानी हो जाती थीं । वो जहाँ जाते , देखने वालों की भीड़ लग जाती थी।

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