1. थोडा थोडा किया भजन एक दिन बहुत ज्यादा बोनस के साथ हमें सतगुरू
एक साथ देते है कतरे कतरे से तालाब और बूँद से सागर भरता है हम जो सेवा में मिटी की
एक टोकरी उठाते है सतगुर हमें उसकी भी मजदूरी
देते है .आओ आज से हम सिमरन भजन
की बीमा पालिसी में थोडा थोडा सिमरन भजन करके किश्त अदा करे फिर आगे की गुरु पर छोड़ दे , वो हमारे आधे अधुरे भजन की लाज रखेंगे
2. अपनी इच्छाओं को रोको, मोह और ममता को त्यागो और निन्दा और तानो
को सहने के लिए तैयार रहो। अगर इस आदर्श पर अपना जीवन नहीं ढाल सकते तो सफलता की आशा
न करो। याद रखो, संसार में कोई भी चीज उसकी पूरी कीमत अदा किए बगैर न पा सकते हो और
न ही पा सकोगे। केवल मूर्ख ही बिना कीमत दिए कुछ पाने की उम्मीद करते हैं। जो यह समझता
है कि उसने बगैर मोल दिए कुछ पा लिया है। उसने असल में एक नये कर्ज का बोझ उठा लिया
है। जब तक इस संसार में एक पाई का भी ॠण है, चुकाने के लिए वापस आना पड़ेगा। अगर अनाज
का एक दाना भी, पडोसी के खेत से आपके घर में, अनजाने में आ गया है, तो उसका भी हिसाब
चुकाना पड़ेगा। आप जो कुछ भी पाते हैं, उसकी कीमत अदा करनी ही पड़ेगी। यह कानून अटल
है। इससे कोई बच नहीं सकता। यह भुगतान पैसे से, किसी चीज़ या अपने शुभ कर्मों के कुछ
अंश से हो सकता है। पर हिसाब तो चुकाना ही होगा।
3. एक दिन किसी ने मुर्शिद से पूछा- रात को उठकर तेरी बंदगी करने का
फायदा क्या है? और अगर न करें तो नुकसान क्या है ?
मुर्शिद ने जवाब दिया- सुन बन्दे! अगर रात को तेरी आँख खुल जाए और तू फिर से सो जाए, तो समझ लेना तूने मेरे साथ बेवफाई की है।
पर अगर तेरी नींद खुल जाए और तू उठ कर इबादत करे और मुझे याद करे, फिर बाद में मुझसे कुछ मांगे और मैं न दूँ, तो समझ लेना मैंने तेरे साथ बेवफाई की है। जो कि मैं कभी भी नहीं करता।
आगे से कभी भी रात को जाग आ जाए, तो उस मालिक की याद में जरुर बैठ जाना चाहिए। और भजन-सिमरन शुरू कर देना चाहिए।
मुर्शिद ने जवाब दिया- सुन बन्दे! अगर रात को तेरी आँख खुल जाए और तू फिर से सो जाए, तो समझ लेना तूने मेरे साथ बेवफाई की है।
पर अगर तेरी नींद खुल जाए और तू उठ कर इबादत करे और मुझे याद करे, फिर बाद में मुझसे कुछ मांगे और मैं न दूँ, तो समझ लेना मैंने तेरे साथ बेवफाई की है। जो कि मैं कभी भी नहीं करता।
आगे से कभी भी रात को जाग आ जाए, तो उस मालिक की याद में जरुर बैठ जाना चाहिए। और भजन-सिमरन शुरू कर देना चाहिए।
4. सच्चे दिल से निकली पुकार सतगुरु तक पहुंचती है पर बेनती सदा ऊंची
सच्ची दात के लिए करनी चाहिए ,सच्चा प्रेमी कभी भी नाशवान चीजों के लिए बेनती नहीं
करता,वह अपने सतगुरु से सतगुरु को ही मांगता है ,हे मालिक ! मैं अपराधी हूँ ,पापी हुं
मेरे अवगुणे और गुनाहों का हिसाब किया जाए तो मैं कभी भी बख्शिश की हकदार नहीं हो सकता
, मैं गुनहगार हुँ आप बख्शनहार है मैं भजन सुमिरन नहीं करता सदा विषयों विकार
मे रहता हूँ मेरे पर कृपा करो ,सीधे रास्ते पर डालो, दया करो मेरे सतगुरु मुझ बिछड़े
हूई को अपने साथ मिला लो.
5. जिस जग मे तू आया है वह एक मुसाफिर खाना है, सिर्फ रात में रूककर
इसमें, सुबह सफर कर जाना है.
लेकिन यह भी याद रहे स्वासों का जो पास खजाना है जिसे
लूटने को कामादिक चोरों ने प्रण ठाना है.
माल लुटा बैठा तो घर जाकर क्या मुँह दिखलायेगा.
'भजन सिमरन' नहीं किया तो अन्त समय पछतायेगा.
रे मन मूरख कब तक जग में जीवन व्यर्थ बितायेगा.
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