Thursday, 22 November 2018

041 - ईश्वर को कहाँ खोजना चाहिए ?



 ईश्वर को ढूँढ़ने के लिए, उसे प्राप्त करने के लिए हम नाना प्रकार के प्रयत्न करते हैं, पर उसे नहीं पाते, कहते हैं कि वह सर्वत्र है, वह सब जगह हैं, पर फिर भी हमें क्यों नहीं दीखता ? 


उसे प्राप्त करने को धन, वैभव, जीवन तक नष्ट करते हैं, पर पाते नहीं, अन्त में निराश हो कहते हैं कि-ईश्वर नहीं हैं। भाई ईश्वर हैं! पर उसे खोजने में गलती कर रहे हो, हम उसे धन वैभव से नहीं पा सकते, अगर उसे पाना हैं
तो प्रेम करना सीखो प्राणी मात्र से प्रेम करो, जड़ चेतन से प्रेम करो, आत्मा से प्रेम करो।


उसे पाने को जंगल में जाने की, धूनी रमाने की, धन वैभव कष्ट करने की, कोई आवश्यकता नहीं हैं। जब वह सर्वत्र है तो आपके पास भी होगा, होगा नहीं-हैं। कहाँ? आपके शरीर में।  जिसे आप आत्मा कहते हैं क्या आपने कभी अपनी आत्मा की आवाज पर ध्यान दिया हैं? नहीं यही कारण है कि आप उसे ढूँढ़ने पर भी नहीं पाते।

विचार करो! जब तुम बोलते हों, चलते हों, काम करते हों, सोचते हो या शुभ काम करने की प्रेरणा होती है तो वह कहाँ से और कौन करता या कहता हैं? जब तुम किसी को कष्ट पहुँचाने का विचार कर चलते हो और तुम्हें अन्दर से कोई रोकता हैं कि ऐसा न करो वह कौन हैं? वह अपने अन्दर मौजूद हैं, उसे अपने अन्दर ही प्राप्त किया जा सकता हैं।


एक बार अकबर बादशाह से फतेहपुर सिकरी में दादूदयाल की मुलाकात हुर्इ। अकबर ने पूछा कि खुदा की जाति, अंग, वजूद और रंग क्या है? दादूदयाल ने दो पंक्तियों में इस प्रकार उत्तर दिया कि-

‘इसक अलाह की जाति है, इसक अलाह का अंग। इसक अलाह औजूद है, इसक अलाह का रंग।।*

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