Tuesday, 4 December 2018

042 - एक सत्संगी की रूह कहाँ तक जा सकती है ?




बड़े हुजूर महाराज जी से किसी सत्संगी ने पूछा -  हुजूर ! जहाँ से रूह को लाया गया है, क्या वहाँ वह बैगुनाह थी ?
    बड़े महाराज जी उत्तर देते हुए कहते है - बेशक ! ये रूहे अचेत पड़ी हुई थी, मालिक ने इन्हें इस सृष्टि में भेज
दिया। वैसे सहस्र-दल कमल में भी रूहे है और सचखण्ड में भी रूहे है, परन्तु वे तरक्की नही कर सकती। 


  • जो सहस्र-दल कमव की रूहे है, वे सहस्र-दल कमल के लिये ही है, आगे नही जा सकती। 
  • जो त्रिकुटी की रूहे है वे त्रिकुटी के लिए ही है। 
  • इस प्रकार जो पारब्रह्म की रूहे है वे पारब्रह्म के लिये, 
  • सोहं देश की रूहे सोहं देश के लिए और 
  • सचखण्ड की रूहे सचखण्ड के लिये ही है। 


लेकिन आपके लिये क्या रियायत है?  कि आप सीधे अनामी देश मे जा सकते है। आपको खुली छ्ट्टी हो।

 यह देश सबसे नीचा और सबसे गन्दा है। परन्तु यहाँ की रूहो को तरक्की के मौका है। अब यह सवाल कई विद्वान  (जो सत्संगी नहीं है) करते है। हुजूर उनसे कहते है कि जिसने आपको भेजा है उसी से पूछिये। लेकिन क्योंकि आप सत्संगी है, इस भेद को समझते है।


अब हम विचार करे कि मालिक ने इस जगह भेज कर तरक्की करने का मौका बख्शा है तो हमें भी चाहिए इस मौके को न चूके और रोज अपने भजन-सुमिरन करने में तरक्की करने की कोशिश करे जी।

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