कम अपनी नाकामयाबी लेकर तो आओ।
2. अपने' को बिना मिटाये "परमात्मा" नहीं मिलता । उतनी कीमत चुकानी ही पड़ती है। और कोई कीमत बड़ी नहीं है। हम अपने को देकर परमात्मा को पाते है, इसमें हम कीमत ही क्या चुकाते है । हमारा मूल्य ही क्या है हमारा कोई मूल्य नहीं है।
3. हमारे शरीर रूपी घर के अंदर काम , क्रोध , लोभ-मोह , और अहंकार रूपी जाले लगे हुए हैं ,उसे गुरु के शबद रूपी झाड़ू से रोज़ रोज़ साफ करते रहें ताकि साफ पाक होकर अपनी खुद की पहचान हो जाये ।
4. संत जो पावर या शक्ति लेकर आते है उसे जाहिर नही करते बलिक चुप रहते है । जब कबीर साहिब रानी इइंदुमती को सचखंड लेकर गए तो उसने देखा कि बहा भी कबीर साहिब आप बैठे हुए है । कहने लगी कि अगर आप ही सतपूरष है तो आप मात लोक में बता देते तो मेरे को इतनी मेहनत करने की क्या ज़रूरत थी .
कबीर साहिब जी कहने लगे क्या तू कहा मान लेती की कबीर ही सतपूरष है। सो अगर संत कहदे की हम ही खुद मालिक है संत है तो कोई नही मानता ।इस लिए संत कहते है बच्चा हम सचखंड छोड़ मनुष्य देह धारण करके तुम्हारे लिए इस मातलोक में तुम्हे लेने आये है ।तुम अपने अंदर प्यार पैदा करो मन को मारो भजन सिमरन करो हम तुम्हे ज़रूर सचखण्ड ले जायेगे । मतलब यह है कि किसी भी इन्सान को संतो की ताकत हैसीयत ओर पावर की खबर नही होती जब तक इंसान सिमरन करके अंदर न जाये ।
5.
सेवा करनी है तो - *घड़ी मत देखो*
प्रसाद लेना है तो - *स्वाद मत देखो*
सत्संग सुनाना है तो - *जगह मत देखो*
बिनती करनी है तो - *स्वार्थ मत देखो*
समर्पण करना है तो - *खर्चा मत देखो*
रहमत देखनी है तो - *जरूरत मत देखो*
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