सेब काटकर मैंने गिनकर कहा तीन बीज हैं ! उसने एक बीज अपने हाथ में लिया और फिर पूछा इस बीज में कितने सेब हैं यह भी सोचकर बताओ ?
मैं सोचने लगा एक बीज से एक पेड़, एक पेड़ से अनेक सेव अनेक सेबो में फिर तीन तीन बीज हर बीज से फिर एक एक पेड़ और यह अनवरत क्रम!
वो मुस्कुराते हुए बोले : बस इसी तरह परमात्मा की कृपा हमें प्राप्त होती रहती है! बस हमें उसकी भक्ति का एक बीज अपने मन में लगा लेने की ज़रूरत है!
- गुरू एक तेज हे जिनके आते ही, सारे सन्शय के अंधकार खतम हो जाते हैं!
- गुरू वो मृदंग है जिसके बजते ही अनाहद नाद सुनने शुरू हो जाते है!
- गुरू वो ज्ञान हैं जिसके मिलते ही पांचो शरीर एक हो जाते हैं!
- गुरू वो दीक्षा है जो सही मायने में मिलती है तो भवसागर पार हो जाते है!
- गुरू वो नदी है जो निरंतर हमारे प्राण से बहती हैं!
- गुरू वो सत चित आनंद है जो हमें हमारी पहचान देता है!
- गुरू वो बासुरी है जिसके बजते ही अंग अंग थीरकने लगता है!
- गुरू वो अमृत है जिसे पीकर कोई कभी प्यासा नही रहता है!
- गुरू वो मृदँग है जिसे बजाते ही सोहम नाद की झलक मिलती है!
- गुरू वो कृपा ही है जो सिर्फ कुछ सद शिष्यों को विशेष रूप मे मिलती है और कुछ पाकर भी समझ नही पाते हैं!
- गुरू वो खजाना है जो अनमोल है!
- गुरू वो समाधि है जो चिरकाल तक रहती हैं!
- गुरू वो प्रसाद है जिसके भाग्य मे हो उसे कभी कुछ भी मांगने की ज़रूरत नही पड़ती हैं ||
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
गुरू और गोबिंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
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