Thursday, 31 January 2019

048 - सचखंड जाने के कितने विक्लप है ?

कबीर साहेब मर्तलोक से सचखंड जाने के इस क्रम को चार भागों में भांटते है।

1. चींटी चाल -- कबीर साहेब कहते है के इस अभ्यास में सबसे पहले जीव की हालत चींटी जैसी होती है जिस तरह चींटी दीवार पर चढ़ती है गिर जाती है फिर चढ़ती है फिर गिर जाती है।।शुरू शुरू में इस अभ्यास में प्रेम औऱ विश्वास से काम लेना पड़ता है।

2. मकडी चाल -- निरंतर अभ्यास के बाद जीव इसमे पारंगत होता जाता है।और फिर जीव की चाल मकडीचाल जैसी हो जाती है।मकडीचाल के मायने जैसे मकड़ी एक तार के जरिए छत से ज़मीन पर उतर जाती है और खा पीकर फिर ऊपर चढ़ जाती है।जैसे जैसे आत्मा ऊपर के मंडलो में आना जाना शुरू करती है।इसकी चाल तेज़ से तेज़ होती जाती है.


3. मीन चाल -- धीरे धीरे अभ्यास से जीव की चाल मछली जैसी हो जाती है मछली चढ़ाई की आशिक़ है।अगर 50 फुट से भी झरना बह रहा हो। मछली उस धार के ज़रिए उल्टा चढ़ जाती है।

4. विहंगम चाल -- यह चाल संतो महात्माओ की होती है।बहुत कड़े अभ्यास के बाद यह चाल उपलब्ध होती है पक्षी की चाल को विहंगम चाल कहते है।जैसे पक्षी एक पहाड़ से उड़ा और ज़मीन पर आकर बैठ गया।वैसे ही जीव अगर आंख बंद करे तो सचखंड चला जाता हैऔर अगर आँख खोले तो शरीर मे आ जाता है.

कबीर साहेब कहते है । हमारी चाल विहंगम चाल है.

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