1. देह तो दुःख सुख का घर है, इसमे तो दोनों ही जरुर आयेंगे, सो इसे अच्छा मान के भुगत ले। जो कई वर्षो का दुःख होता है, वह सत्संगी को थोड़े दिनों में ही भुगताया जाता है, सो किसी बात की चिंता न करना.
2. "जो 'शब्द' गुरु देता है, हमेँ चाहिए कि सोते जागते, खाते पीते यानी हर वक्त उसी में ख्याल रखें, क्योंकि जो कुछ मिलना है, 'शब्द की कमाई' से ही मिलना है। वरना तीर्थ, व्रत और दूसरे जितने भी बाहरी कर्मकांड हैं, कौड़ी काम के नहीं।"
3. गुरु कुंजी है, मनुष्य ताला है, मन कोठरी है और शरीर उसकी छत है। गुरु के बिना मन का द्वार नहीं खुल सकता उसकी कुंजी किसी और के पास नहीं केवल गुरु के पास है.
4. मौन - क्रोध की सर्वोत्तम चिकित्सा है .अपने खिलाफ बाते खामोशी से सुन लो. अगर नही सुन सकते तो वहां से चुपचाप चले जाओ क्यो की जो बर्दास्त करता है और मौन रहता है वो मुनि अवस्था को प्राप्त करता है और वो ही साधना कर सकता है।
5. सुमिरन तो हमें हर रोज, बिना नागा करना है सुमिरन हम भले ही कछुआ चाल से ही क्यों ना करें, पर रोज करते रहने से जीत जरुर हासिल कर पायेंगे भले ही कछुये की चाल धीमी होती है, पर उसमें अहंकार नहीं होता धीरे धीरे ही सही, थोड़ा देरी से ही सही पर अपनी मंजिल पर जरुर पहुंच जायेंगे.
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