कुलमालिक की शरण में है। जब हम ईश्वर को मानते हैं, तो सब कुछ उस परमपिता परमात्मा पर छोड़ देना चाहिए। यदि कोई अपने - आपको ईश्वर से बढ़कर समझता हो और दूसरों की बेइज्जती करता हो या अपनी मान-बड़ाई या अंहकारवश दूसरों का अपमान करता हो। उसे उस के किए की सजा एक न एक दिन अवश्य मिलेगी। कुदरत किसी के साथ नाइंसाफी नहीं करती। जो बोया है वही सामने आएगा। हाँ देर जरूर हो सकती है, अंधेर नहीं।" "करम जो जो करेगा तू, वही फिर भोगना भरना।"
2. ऐसा कौन सा इंसान है जिससे गलती नहीं होती चाहे वह कोई पाप न करने के प्रति सचेत रहे फिर भी कई पाप अनजाने में भी हो जाते हैं और हर प्रकार के पापों का फल भुगतना पड़ता है। जब सतगुरु दया करके उसके हृदय को नामरूपी अमृत से सरोबार कर देते हैं तो किसी भी जन्म के कर्मों और बुरे संस्कारों का नामोनिशान तक नहीं रहता, फिर उसे धर्मराज के सामने अपमानित नहीं होना पड़ता।
3. भजन की खूबी और महिमा एकाग्रता में है, घंटों के माप-तोल में नहीं।अगर आप प्रेम,भक्ति और पूरी एकाग्रता के साथ एक घण्टा भी बैठें तो वह उस पाँच घण्टे की बैठक से कहीं अच्छा है जिसमें आपका मन इधर -उधर भागता रहता है,तरह-तरह की सांसारिक समस्याओं और सुखों के बारे में सोचता रहता है।इसलिए हमें सारे खयालों को हटा कर पूरी तरह से एकाग्रचित्त होने की आदत डालनी चाहिए।
4. जो समय मालिक के भजन सिमरन एवंम महिमा गायन में लग जाये,तो समझ लीजिये करोड़ो तीर्थो के स्नान के बराबर है कोई विरले-विरले भागों वाली की जीभा ही होगी जो अपने गुरु का भजन सिमरन करती है और अपने मुख से गायन करती है।श्री गुरुनानक साहब महाराज जी अपने वचनों द्वारा फ़रमा रहे है कि उसकी कोई बराबरी नही,उसकी रीस नही। जो गुरुमुखजन मालिक का सिमरन करते है।मालिक सदा ही परछाई की तरह उनके साथ रहते है।
5. फ़िक्र नहीं ज़िक्र करो, अब क्या होगा? कल क्या होगा? इस तरह की कई फ़िक्र जो हम करते रहते हैं, इनको छोड़ कर हमें ज़िक्र करना चाहिए, परम पिता परमेश्वर द्वारा हम पर किये गए उपकारों का, सतगुरु की बख्शीषों का जिक्र करना चाहिए, परमात्मा की अनंत दया मेहर का ज़िक्र करना चाहिए.
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