Friday, 26 April 2019

055 - आत्मा की खुराक क्या है ?

किसी व्यक्ति को बहुत जोरो की प्यास लगी हो वह प्यास के मारे तड़प रहा हो उसे पानी न मिल रहा हो अन्य तमाम प्रकार के पेय पदार्थ उसे पिलाये जाये तो उसकी प्यास पूर्ण रूप  से समाप्त नही होगी । थोड़ी देर बाद वह फिर प्यास से तड़पने लगता है  जब कोई व्यक्ति कही से पानी लाकर उसे पिला देता है तो उसकी प्यास
शांत हो जाती है । जहाँ वह व्यक्ति तड़प रहा था वही पर वह पानी पीकर तृप्त हो जाता है और आनंद मग्न हो जाता है । क्यों कि उसकी प्यास बुझ गयी । जो तकलीफ थी वह ख़तम हो गयी ।



  इसी प्रकार इस आत्मा की खुराक सत्संग होता है । जब इसे सत्संग नहीं मिलता तो ये संसार की वस्तुओं में सुकून ढूढती है।  संसार के कर्मकांडो में शुकुन ढूढती है संसार के पदार्थो का शुकुन तो कुछ क्षण के लिए होता है उसके बाद ये आत्मा फिर तड़पने लगती है लेकिन वर्षो से तड़पती इस आत्मा की खुराक सत्संग होता है जब ये खुराक इसे मिल जाती है तो इसकी सारी तड़पन दूर हो जाती है ओर ये अपने मूल प्रभु परमात्मा के साथ जुड़कर आनंद को प्राप्त करती है 




  संसार कर्मो की दहकती भट्टी है जिसमे ये जीवात्मा निरंतर जल रही होती है उसकी अवस्था अत्यन्त दयनीय होती है सत्संग ऐसी खुराक अमूल्य निधि है एक वरदान है जिसके द्वारा तड़पती हुई जीवात्मा को शीतलता और शांति प्राप्त होती है संसार रूपी भवसागर में डूबती हुई जीवात्माओं के लिए सत्संग वह नौका है जिससे वे इस भावसागर से पार हो जाती हैं सत्संग में पावन और नेक विचारो की अमृतधारा का पान करते करते मनुष्य अपने बुरे विचारों को त्यागकर आध्यात्मिक उन्नति की तरफ बढ़ता है। सत्संग से व्यक्ति के मन की मलिनता धुल जाती है वह काल और माया के प्रभाव से मुक्त हो जाता है 




  संतो की संगति परमार्थ उन्नति के साधन है चाहे हम उनकी महानता को जानते हो या न जानते होे उनका दर्शन हमें आत्मिक चेतनता और शीतलता प्रदान करता है प्रभु भक्तो की संगति सौ साल की निष्कपट भक्ति से कही बेहतर है सत्संग इस जीवात्मा के आनंद की खुराक है इसलिए सत्संग बहुमूल्य है इसका मूल्य आका नहीं जा सकता है । धर्म शास्त्र भी कहते है - 


सौ कार्य छोड़कर भोजन कर लेना चाहिए 
हजार कार्य छोड़कर स्नान कर लेना चाहिए 
लाख कार्य छोड़कर दान कर लेना चाहिए और
करोडो कार्य छोड़कर भगवन का भजन कर लेना चाहिए यानि सत्संग कर लेना चाहिए . 

इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि सत्संग का मानव जीवन में कितना महत्त्व है यही आत्मा की असली खुराक है इसलिए जब भी मौका मिले तो करोडो कार्य छोड़कर भी सत्संग कर लेना चाहिए ।

एक घडी आधी घड़ी ,आधी में पुनि आध।।

कबीर संगत साधु की ,काटे कोटि अपराध।।

Please read this post on Android  mobile app - GuruBox 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts