हमारे कर्म कितने गहरे हैं यह हम नही जानते। कई ऐसे छोटे छोटे कर्म भी होते हैं जिनके भुगतान के लिये हमें दुबारा इस संसार में आना पड़े। पर सतगुरु नही चाहते कि हम यहां इन छोटे छोटे कर्मों की वजह से यहां आयें इसिलिये ही सतगुरु हमसे सेवा करवा कर इन कर्मों का भुगतान करवा देते हैं।
जैसे कचरे का ढेर पड़ा हो तो उसमें कई तरह की चीजें रहती है अच्छी भी खराब भी, पर हम उसे कचरा ही कहते हैं, जबकि कबाड़ी उसमें से छांट कर अलग अलग करके दोनो की कीमत वसूल करता है।
हमारे भी संचित कर्मों का ऐसा ही पहाड़ बना हुआ है जिसमें शुभ अशुभ दोनो ही कर्म हैं। जब हम डेरे में सेवा करते हैं, मान लो हमने रोड बनाने की सेवा की। प्रोग्राम के समय कई संगत उस पर चलती है, उनमें कई रुहें ऐसी भी होती हैं जिनके हम कर्जदार हो।
यह हम नही जानते पर मालिक को सब पता होता है। न सिर्फ रोड की सेवा, बल्कि डेरे हर सेवा में, प्याऊ, लंगर, कैंटिन, सिक्युरिटी, मोटर, सायकल स्टेंड, टॉयलेट, लॉन, पंडाल, ट्रांसपरंट, ट्रेफिक, बुक स्टॉल, पाठी आदि तरह की हर सेवा जो भी होती हैं, सब में यह नियम लागू होता है।
यही नही बल्कि जो भी जिस घर से सेवा पर जाता है, उसके घर वालों को भी उसका फायदा होता है, क्योंकि कुछ उस सेवादार की जिम्मेदारियां भी उसके घर वालों ने ली हैं तो सेवा का फल उन्हें भी जरुर मिलना है।
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