Saturday, 28 September 2019

070 - गुरु बिन गति नहीं

कबीर साहब जी कहते हैं -  संत धोबी जैसा काम करते हैं। जैसे धोबी के पास कितने ही कपड़े आते हैं,

मैकेनिक के, हलवाई के या फिर और भी ना जाने किनके-किनके आते हैं, लेकिन वो किसी से भी उनकी जात
नहीं पूछता है। क्योंकी उसका काम सिर्फ और सिर्फ कपड़े की मैल निकालकर उस कपड़े को साफ करना है।चाहे कितना भी मैला कपड़ा क्यों ना हो.

वो उसे लेने से कभी भी इंकार नहीं करता है। क्योंकी वो जनता है कि मैल कोई और चीज है, और इसके अंदर की सफेदी कोई और चीज है। वो धोबी जानता है कि जितना भी मैला कपड़ा हो, उसमें मेहनत करके उसकी सफेदी आ ही जाएगी।

ठीक उसी प्रकार संत-महात्मा बड़े ही दयालू होते हैं। उनकी शरण में कोई कितना भी बड़ा पापी या अपराधी चला जाए, फिर चाहे वो किसी भी कौम का हो या फिर चाहे वो किसी भी मजहब का ही क्यों ना हो, संत-महात्मा कभी भी उससे उसकी जात-पात नहीं पूछते हैं। जीव कितना भी दुनियावी मैल से कितना भी क्यों ना लिबड़ा (भरा/सना) हो, संत-महात्मा उसे धिक्कारते नहीं हैं। वे उसकी मैल नहीं, बल्कि उसके अंदर मौजूद उस सफेदी को देखते हैं, जो मैल उतरने के बाद जाहिर होनी है।

ऐसे सच्चे और रहमदिल संत-महात्मा की शरण में जाने वाले मैले से मैले जीव को भी संत-महात्मा उसकी मैल उतरवाकर उसे उसकी असली सफेदी में ला देते है। मतलब उन्हें अपने जैसा ही बना लेते हैं।  तात्पर्य  - गुरु बिन गति नहीं. 

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