1. ऐ मेरे मालिक - मैं बिलकुल नादान हूँ, मैं नहीं जानता कि तेरे से क्या मांगू ? जो तूं मेरे लिए उचित समझे, जो कुछ भी तूं मुझे दे या जहाँ पर तूं मुझे जैसे रखे , उस में मैं खुश रहूँ । मेरे में कोई गुण नहीं , कोई भक्ति नहीं , मेरे कर्म काले और पापों से भरे हुए हैं । मेरे अंदर कोई अच्छाई नहीं है , मन ने मेरे को बुरी तरह से कुचल रखा है ।
मेरे जैसे पापी के लिए, ऐ मेरे मालिक तेरे चरणों के सिवाय किसी का सहारा नही है । रहम कर ! और मुझे अपनी शरण में ले लो । मेरे को और कुछ नहीं चाहिए, बस अपना दास बना ले और जिस से मैं तेरा हो जाऊं और तू मेरा हो जाए.
2. यदि किसी सत्संगी को दुःख में देखो तो उसका सहारा बनने की कोशिश करो। क्योंकि मालिक को वही शख्श प्यारा लगता हैं जो उसके प्यारो की मदद करता हैं।
3. यदि स्वयं को मालिक के चरणो में अर्पित कर रखा हैं। तब आपका कोई काम अधूरा नही रहेगा। क्योंकि अब आपका काम मालिक की जिम्मेदारी बन जाता हैं।
4. वह सत्संगी बहुत अच्छा हैं जो मालिक को याद करता हैं। और वह सत्संगी बड़भागी हैं जिसे मालिक याद करते हैं।
5. यदि सत्संगी की विनती में उसकी अंतरआत्मा की पुकार भी शामिल हो जाये तो मालिक की कार्रवाई भी फ़ौरन होगी।
6. किसी सत्संगी द्वारा आपको या फिर आप के विषय में भला-बुरा कहे जाने पर इतना जरूर समझ ले कि उसमें मालिक की रजा शामिल हैं। और उसमें तुम्हारा कोई विशेष लाभ छिपा हुआ हैं।
7. अंतर की आँख न भी खुले कोई बात नही लेकिन सुमिरन,ध्यान,भजन में कभी भी कोताही न हो। बाकी मालिक स्वयं देखेंगे।
8. किसी सत्संगी की गलती देखने से बेहतर हैं कि स्वयं के दोष दूर करने में समय व्यतीत करे।
9. सुरत की जुबां से किया गया सुमिरन विशेष कर लाभकारी होता हैं।
10. जिस सत्संगी ने पाँचो चोरो पर विजय प्राप्त कर ली। वह सतगुरु का प्यारा हो गया। लेकिन यह भी सतगुरु की दया के बिना संभव ही नही है।
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