अक्सर कुछ लोग सोचते है कि सतगुरु से ज्ञान अर्थात नामदान लिये कई वर्ष हो गए, थोड़ा बहुत भजन सिमरन भी करते हैं, सत्संग मे भी जाते है, धार्मिक किताबे भी पढ़ते है, और गुरु घर कि सेवा भी करते हैं लेकिन अभी
तक आंतरिक तरक्की नही हुई, ऐसा क्यों ?
देखो जब हम अपना नया घर बनाते है तो उसमे खिड़की दरवाजे लगाने के लिये बाजार से लकड़ी लेकर आते हैँ, तो बढ़ाई (दरवाजे बनाने वाला) उन लकड़ियों के तुरंत दरवाजे नही बनाता क्योंकि लकड़ियाँ गीली होती है, अगर वह उन गीली लकड़ी के दरवाजे बनाएगा तो दरवाजे मुड़ जाते है, जिससे वह खराब हो जाते है । बढ़ाई दरवाजे बनाने के लिये कई महीनो तक लकड़ी को सुखाने के लिये सूर्य कि रौशनी मे रख देता है।
इसी तरह जब हमें सतगुरु से ज्ञान मिलता है तो हम भी उस गीली लकड़ी कि तरह होते है । जब तक सतगुरु रुपी बढ़ाई हमारे अंदर फैले काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार रूपि पानी को सूर्य रुपी ज्ञान से सुखा नहीं देते तब तक वह सतगुरु हमे ऊपर के लोकों मे नहीं ले जाते क्योंकि उन लोकों मे जाने के लिये आत्मा को इन विकारों से मुक्त होना पड़ता है ।
इसलिए सतगुरु अपने शिष्य को पहले भजन सिमरन पर ध्यान लगाने को कहते है ताकि शिष्यकि आत्मा रूहानी लोकों का तेज़ सहन करने के काबिल हो सके । जब सतगुरु देखते है कि शिष्य कि आत्मा अब रूहानीसफ़र के लिये तैयार है तो सतगुरु अपनी दया कर देते है और तीसरी आँख रूपि खिडकी खोलकर आत्मा को रूहानी लोकों का सफ़र करवाते हुए अन्त मे परमात्मा मे लीन कर देते है।
Radha soami ji
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