एक दिन कुला, भुला और भागीरथ तीनों ही मिलकर गुरु अर्जन देव जी के पास आए | उन्होंने आकर प्रार्थना की कि हमें मौत से बहुत डर लगता है आप हमें जन्म मरण के दुख से बचाए | गुरु जी कहने लगे, आप गुरमुख
बनकर मनमुखो वाले कर्म करने छोड़ दें| उन्होंने कहा महाराज ! हमें यह समझाए कि गुरमुख और मनमुख में क्या अन्तर होता है ? हमें इनके लक्षणों से अवगत कराए |
- गुरु के वचनों को याद रखना
- अपने उपर नेकी करने वालो की नेकी को याद रखना
- सबकी भलाई सोचना और चाहना
- किसी के काम में विघन नहीं डालना
- खोटे कर्मों का त्याग करना
- नेक कर्मों को ग्रहण करना
- गुरु के उपदेश को ग्रहण करके अपने आत्म स्वरुप को जानने वाला और अनेक में एक को देखने वाला गुरमुख होता है
मनमुख के लक्षण-
- सबसे ईर्ष्या करनी
- किसी का भला होता देख दुखी होना
- अपनी इच्छा से काम करने
- कभी किसी का भला न सोचना
- जो नेकी करे उसकी बुराई करनी
- सबके बुरे में अपना भला समझना
- कथा कीर्तन ध्यान न लेना
- गुरु उपदेश को ध्यान से न सुनना
- पुण्य और स्नान से परहेज करना
- उपजीविका के लिए झूठ बोलना
गुरु जी के यह वचन सुनकर तीनों को संतुष्टि हुई. उन्होंने गुरमुखता के मार्ग पर प्रण कर लिया. फिर वह गुरु जी को माथा टेक कर अपने काम काज में लग गये.
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