Friday, 29 May 2020

098 - रुह को अन्दर जानें में कोनसी रुकावट है ?


"कर नैनों दीदार महल में प्यारा है।"  इस शब्द के द्वारा कबीर साहब नें अन्दर का भेद जितना खोला है उतना किसी भी संत ने नहीं खोला। इस पर सतसंग करते हुए महाराज सावन सिंह जी फरमाते हैं :ये जो शरीर है रुह या आत्मा के रहनें का महल है।  फिर कहते हैं कि ईश्वर, परमेश्वर, ब्रह्म, पारब्रह्म खुद खुदा भी इसके अन्दर है। बाहर न किसी को मिला है न ही मिलेगा।  बाहर क्या है - कागज, पत्थर और पानी, तीर्थों पर पानी है, मूर्तियाँ पत्थर से बनी हुई  हैं, किताबें कागज की हैं और तो कुछ नहीं।

लेकिन जो ग्रन्थ पोथियाँ वेदशास्त्र है वे सब नाम की महिमा कहते हैं। किताबों में नाम की महिमा है परन्तु उसमें नाम या परमात्मा खुद नहीं वो तुम्हारे अन्दर है।  वो जब भी मिलेगा अपनें अन्दर ही मिलेगा बाहर नहीं।

कबीर साहब कहते है कि तुम इस शरीर रुपी महल में दाखिल हो जाओ। तुम्हारा परमात्मा तुम्हारे अन्दर है। अन्दर आँखों से उपर चढो़ और उसके प्रत्यक्ष दीदार करो। आगे कहते हैं कि अगर अन्दर जाना है, उससे  मिलना है, तो पहले अपनें दिल को साफ करो और ये कुछ बुराइयां छोड़ दो !!! सबसे पहले काम छोड़ दो क्योंकि कामी पुरुष अन्दर नहीं जा सकता है।

काम और नाम की दुश्मनी है जिस हृदय में काम है वहाँ नाम असर नहीं करता है। नाम हमें ऊंचे रुहानी मंडलों में ले जाता है जबकि काम में रुह नीचे गिरती है।

क्रोध में रुह फैलती है हमें रुह को समेंट कर उपर ले जाना है। इसलिए क्रोध भी छोड़ दो। अगर अहंकार है तो भी रुह अन्दर नहीं जा सकती है। इसी तरह लोभ और मोह भी छोड़ दो क्योंकि ये भी रुह को अन्दर जानें में रुकावट डालते हैं। फिर क्या करो काम की जगह शील से काम लो, क्रोध के बदले क्षमा से काम लो, लोभ के बदले संतोष और मोह के बदले विवेक से काम लेना शुरु कर दो।  इसी तरह अहंकार के बदले दीनता अपना लो।

जो सहायक शक्तियाँ हैं उनको ले लो और जो विरोधी शक्तियाँ हैं उनको छोड़ दो। फिर कहते हैं शराब छोड़ दो, मांस छोड़ दो, झूठ बोलना छोड़ दो। इन तीनों को छोड़ कर फिर अन्दर जाओ अगर इन तीनों में से एक भी चीज है तो रुह अन्दर नहीं जा सकती है।

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