गुरू वो मृदंग है, जिसके बजते ही अनाहद नाद सुनने शुरू हो जाते है.
गुरू वो ज्ञान हैं, जिसके मिलते ही भय समाप्त हो जाता है।
गुरू वो दीक्षा है, जो सही मायने में मिलती है तो भवसागर पार हो जाते है.
गुरू वो नदी है,जो निरंतर हमारे प्राण से बहती हैं.
गुरू वो सत् चित् आनंद है,जो हमें हमारी पहचान देता है.
गुरू वो बांसुरी है, जिसके बजते ही मन और शरीर आनंद अनुभव करता है.
गुरू वो अमृत है, जिसे पीकर कोई कभी प्यासा नही रहता है.
गुरू वो कृपा है, जो सिर्फ कुछ सद शिष्यों को विशेष रूप मे मिलती है और कुछ पाकर भी समझ नही पाते हैं.
गुरू वो खजाना है, जो अनमोल है.
गुरू वो प्रसाद है, जिसके भाग्य में हो उसे कभी कुछ भी मांगने की ज़रूरत नही पड़ती हैं.
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