1. जिन्दगी एक रेलवे स्टेशन की तरह है ,आत्मा एक ट्रेन है जो आती है और चली जाती है ,पर सतगुरु इनक़्वायरि काऊंटर पर बैठे हैं ,जो हमेशा कहते हैं मे आई हेल्प यू ? और हेल्प करते भी हैं ,की कौनसी गाड़ी में कितना वक्त और कैसे बैठना है मगर हम हैं कि बैठते ही नहीं हैं ,तो मंज़िल पर कैसे पहुँचेंगे।
2. रूहानियत - पढने लिखने का विषय नहीं यह तो कमाई और निजी अनुभव की वस्तु है जिसने आत्मिक विद्या के बारे में पढाई तो कर ली परन्तु अभ्यास द्वारा निजी अनुभव प्राप्त नहीं किया उसकी आत्मिक चेतना कभी भी जाग्रत नहीं हो सकती.
3. जो मनुष्य अपना काम-काज करते हुए प्रभु के नाम का सुमिरन करता रहता है, वह सदा समाधि के आनंद में रहता है । जो चलते-फिरते प्रभु के नाम का सुमिरन करता रहता है, उसे पग-पग पर पर यज्ञ का फल प्राप्त होता है । जो सांसारिक वस्तुओं का भोग करते हुए भी और उनका त्याग करके भी प्रभु के नाम का सुमिरन करता है, उसके शरीर को कर्मों का फल नहीं भोगना पड़ता । जो इस प्रकार सदा प्रभु के नाम के सुमिरन में लगा रहता है, वह जीते-जी मुक्त हो जाता है ।*
किरति करम के बीछुड़े करि किरपा मेलहु राम।।
हे परमात्मा ! हम अपने कर्मों की वजह से तुझसे बिछड़कर भटक रहे हैं। चाहे अच्छे कर्म हैं, चाहे बुरे परंतु यह हमारे कर्म ही हैं, जो हमें तुझसे दूर रखे हुए हैं।तू हम पर कृपा कर दया मेहर व बक्शीश कर और हमें अपने साथ मिला ले। तू हमें अपने से मिलाए तो ही हम वापस जाकर तुझ से मिल सकते हैं। हम जीवो के बस की बात नहीं है कि अपने आप तुझ तक पहुंच सके।
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