Friday, 25 September 2020

113 - हमे दुःख और तख़लीफ़ क्यों आते हैं ?

गुरु का सच्चा सिमरन करने से आहिस्ता-आहिस्ता हमारे अंदर इतनी सहनशीलता आ जाती है की हम बिना संतुलन खोए जीवन में आनेवाले उतार-चढ़ाव का सामना करने लगते है और हमें इस बात का भी ज्ञान होने लगता है की जो कुछ भी हमारे साथ हो रहा है वह हमारे कमो॔ के अनुसार ही हो रहा है और हमें  धीरें-धीरें यह महसूस होने लगता है की सतगुरु हमेशा हमारे अंग-संग है और हमारी हर जगह हर समय संभाल हो रही है.

एक बार एक महात्मा ने बाबा जी से अरदास की के घर मे कलेश रहता है, आशीर्वाद दो तो बाबा जी ने कहा, सत्संग किया करो दातार सब ठीक करेगा। एक और महात्मा ने अरदास की के घर मे सभी दुखी रहते हैं, आशीर्वाद दो तो बाबा जी ने कहा, सत्संग किया करो दातार सब ठीक करेगा। फिर एक महात्मा ने अरदास की के घर मे बरकत नही होती, आशीर्वाद दो, बाबा जी ने कहा, सत्संग किया करो दातार सब ठीक करेगा। 

वहीं पास खडे एक महात्मा ने सब सुना, उन्होने बाद मे बाबा जी से पूछा के तीन महापुरुशो ने आपसे दुख, दरीद्रता और कलेश दूर करने के लिए आशीर्वाद मांगा तो आपने उनसे एक ही बात कही के सत्संग किया करो, ये कैसे ? तीनो का एक ही इलाज कैसे हो सकता है ? तो बाबा जी ने कहा, सत्संग कल्पविक्ष होता है, सत्संग में आने से हमे तन मन धन तीनो के सुख प्राप्त होते हैं और हमारे घरो से ये सब बिमारीयां दूर हो जाती हैं, इसलिए, हम भी सतगुरु से यही अरदास करते हैं की हमेशा अपने चरणो से लगाये रखे और सेवा, सिमरन, सत्संग से जोडे रखें .


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