परम संत सावन शाह महाराज जी ने समझाया है कि जो लोग जीते जी भजन सुमिरन करके पर्दा खोल लेते हैं , उनको 6 महीने पहले अपनी मौत की खबर हो जाती है और जो मामूली कमाई वाले हैं उनको सतगुरु 2 या 3 दिन पहले आकर बता देते हैं कि तुमको फलां वक्त ले चलेंगे ।
जो लोग सतगुरु से नाम लेकर कमाई नहीं करते , उनको मौत से पहले सतगुरु दर्शन नहीं देते । मगर सम्भाल उनकी भी होती है ।
जब आत्मा शरीर से बाहर निकलती है तो आगे तीन रास्ते हैं । - दांया , बांया और बीच का ।
बीच के रास्ते को शाहरग या सुषमना भी कहते हैं ।
बांई तरफ काल , भगवान के एजेंट ,यमदूत या फरिश्ते , मौजूद होते हैं और
दांई तरफ सतगुरु खड़े होते हैं ।
बांई तरफ जमदूत मरने वाले को आवाज देते हैं , इधर आ जाओ । इधर रास्ता है । उस वक्त सतगुरु उस रूह , आत्मा को पकड़ लेते हैं और बांए रास्ते नहीं जाने देते ।
जिसको गुरु नहीं मिला वह यमदूतों के साथ जाता है और उसका बुरा हाल होता है । यमदूत उसके किसी मरे हुए रिश्तेदार का रूप धारण करके आवाज देते हैं कि ऐ , फलाना , यार , बेटा , ऐ भाई आदि बोलकर आवाज देते हैं कि इस तरफ आ जा , इधर रास्ता है । उस बेचारे को क्या खबर कि यह धोखा है । वह उधर जाता है और मारा जाता है ।
आगे काल मूंह खोले बैठा है , जीव उसमें जाता है , काल दाढों से चबाता है । काल का रूप देखकर कईयों का टट्टी, पेशाब निकल जाता है डर के मारे , रोता चिल्लाता है ।
कबीर साहब ने कहा है कि जगत चबीना काल का , कुछ मुख में , कुछ गोद ।
सतगुरु अपने जीवों को काल से छुड़ा लेता है और अपने साथ ऊपर के रूहानी मंडलों में ले जाता है । किसी को सहंसदल कमल , किसी को त्रिकुटी लोक , किसी को पार ब्रह्म लोक में ठहरा कर भजन सिमरन करवा कर , काल का लेखा जोखा खत्म करवा कर आगे सतलोक पहूंचाते हैं ।
सूक्ष्म व कारण मंडलों में , उन देशों में , हजारों सालों तक भजन सिमरन करना पड़ता है । जो कोई इस दुनियां की आस , अधूरी इच्छा होगी तो उसको धर्मराज से सजा दिलाकर फिर से मनुष्य शरीर में भेज देते हैं उसको नए सिरे से गुरु की खोज करके भक्ति करनी पडे़गी ।
सतगुरु उसको 1-2-3-4 जन्म तक बार बार मनुष्य शरीर में भेजते हैं । संत दो से ज्यादा जन्म देना पसंद नहीं करते ।
भजन सिमरन करके ही कर्मों का लेखा जोखा खत्म होगा । नाशवान दुनियां के प्रति इच्छाएं ही जन्म का कारण बनती हैं । जो जीते जी शब्द अभ्यास, कमाई करेगा वो पहले सतलोक पहूंचेगा ।
कबीर साहब कहते हैं कि ---
एक जन्म गुरु भक्ति कर , जन्म दूसरे नाम ।
तीसरे जन्म मुक्ति पद , चौथे में निज धाम ।
लेकिन अब परम संत ज्यादा Power लेकर आये हैं । एक जन्म में ही मुक्ति पद को प्राप्त किया जा सकता है ।
धनी धर्म दास जी ने आठ जन्मों तक कबीर जी का संग किया था , तब मुक्ति पाई ।
परमार्थी पत्र भाग 2 में सावन शाह महाराज जी का वचन लिखा है । संत ही एक जन्म में पांचों मंडलों की रसाई करता है ।
एक जन्म की भक्ति वाले को संत की देह के दर्शन होते हैं ।
दूसरे जन्म की भक्ति वाले को नाम दान मिलता है ।
तीसरे जन्म की भक्ति वाले नाम दान की सेवा मिलती है ।
चार जन्म की भक्ति वाले को दरबार की सेवा मिलती है ।
पांच जन्म की भक्ति वाले को संत की देही की सेवा मिलती है ।
6. छः जन्म की भक्ति वाला संत बनता है ।
भक्ति कई जन्मों का कोर्स होता है ।
हमने तो सतगुरु के बताये हुए रास्ते पर चलना है , सतगुरु जानें कब भवसागर रूपी दरिया से पार करें ।
Bahut lamba koras hai
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