Sunday, 21 February 2021

131 - जीव मन को वश में क्यों नहीं करता ?

संत मलूकदास जी चेतावनी देते हैं कि अज्ञानी लोग इंद्रियों के भोगों को सच्चे सुख का साधन समझने के भ्रम का शिकार है । ये सुख क्षणभंगुर है और जीव की शक्ति को नाश करने का कारण बन जाते

हैं । आप समझाते हैं कि जब तक जीव मन को वश में नहीं करता, यह इंद्रियों के भोगों और विषय-विकारों से उपराम होकर प्रभु की भक्ति में नहीं लग सकता ।


साईं बुल्लेशाह जी कहते हैं कि प्रभु-मिलन के इच्छुक व्यक्ति को पता होना चाहिए कि वह प्रियतम स्वयं उसके अंदर बैठा है परंतु अहम में फंसा हुआ जीव उसको देख नहीं सकता । जीव को उसके नाम का सिमरन करना चाहिये और रचना के प्रेम के स्थान पर रचनाकार से प्रेम करना चाहिये । मनुष्य के संकट का सबसे बड़ा कारण यह है कि वह भक्त बनने की बजाय भगवान बन बैठा है : "बुल्ला रब्ब बण आपे, तद दुनिया दे पए सयापे" ।
अहं का त्याग करके ही मनुष्य इस संकट से मुक्त हो सकता है:

जिसने सुमिरन नही किया उसने कुछ भी नही किया ! चाहे उसने लाखो दान पुण्य किये हो ग्रंथ पढे हो  चाहे रोज सत्संग सुनता हो पर सुमिरन के बिना व्यर्थ है.

सुमिरन के बिना सतगुरु के रूहानी दर्शन कभी नहीँ हो सकते*सच्ची तडप से 15 मिनट भी की गयी भक्ति कुछ दिनो तक की जाने वाली भक्ति से भी ज्यादा बेहतर है*

 रब  रब करदे  उमर  बीत  गई ,
 रब  की  है , कदे  सोच्या  ही  नहीं ,
 बहुत  कुछ  मंग  लया  ते  बहु  कुछ  पा  लया ,
 रब  नूं  ही  पाणा  है , कदी  सोचया  ही  नहीं ।

है आरजू मेरी करूं मै दीदार सतगुरु प्यारे का
नज़रों से सजदा कर लूं दर अपने गुरु प्यारे का
हमेशा होती है इस दर पर रहमतों की बारिश
बख्शीस का खजाना है दर मेरे सतगुरु प्यारे का

अच्छा स्वभाव वह खूबी है जो सदा के लिये सभी का प्रिय बना देता है , कितना भी किसी से दूर हो पर अच्छे स्वभाव के कारण आप किसी न किसी पल यादों में आ ही जाते हो . इसलिये स्वभाव ही इंसान की अपनी कमाई हुई सबसे बड़ी दौलत है.

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