एक बार गुरु नानकदेवजी ने बाले और मर्दाने से पूछा था -
इस पर बाले ने कहा - आज का सूरज चढ़िया है कल का पता नहीं चढे़गा या नहीं।
इस पर नानकदेवजी कहने लगे - जीवन इतना बड़ा तो नहीं है। मर्दाने तू बता।
मर्दाना कहने लगा - सच्चे पातशाह ! अब जो घड़ी आई है, पता नहीं अगली घड़ी आयेगी भी या नहीं !
नानकदेवजी कहने लगे - अभी भी बहुत दूर की बात कर रहे हो। जीवन तो इतना भी नहीं है।
इस पर दोनों ने हाथ जोड़कर कहा - सच्चे पातशाह ! फिर आप ही बताओ।
गुरु नानकदेवजी ने कहा - जीवन एक श्वांस का खेल है। अगर अन्दर आ गया, बाहर ना आये। अगर श्वांस बाहर आ जाये, वापस अन्दर ना जाये। एक श्वांस का खेल है। इसलिए, हर स्वाँस में सिमरन करो ।
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