एक अपाहिज सोचता है क़ि हे मालिक अगर में चल सकता होता तो रोज तेरे दर पर आता लेकिन हक़ीक़त तो यह है की अगर वो ठीक होता तो कभी मालिक के बारे में सोचता भी नही याद करो.
जब हम सुखी थे तो सांसारिक के सुख में ही व्यस्त थे. एक बार अपने अंदर झाँक कर देखो आपने पहले कभी मालिक को इतनी भावना से याद किया है , जितनी भावना से आज कर रहे है ये दर्द ये दुःख मालिक की किरपा है क्योंकि ये हमे मालिक से जोड़ती है.
दुःख दारु सुख रोग भया जा सुख ताम ना होइ - दुःख असल मायने में दारु (दवा) है और दवा तो कड़वी होती ही है ,पर ठीक होने के लिए दवा तो पिनी ही पड़ेगी - भाव मालिक तक पहुँचने के लिए दुःख तो सहना ही होगा.
हक़ीक़त तो यह है कि यदि पानी के बगैर सागर में डूबा नही जा सकता तो पानी के बगैर सागर पार भी नही किया जा सकता. उसी तरह संसार दुखो से भरा हुआ है यह करनी का मार्ग है गला बाता नाल कुछ नहीं होना जिने मर्जी मेसेज करदे रहीये कुछ नहीं होना, सिर्फ़ भजन सीमरन करना ही पड़ेगा शब्द धुन की कमाई देखी जाएगी.
नानक के घर केवल नाम निधान
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