परमात्मा का कोई धमॆ नही होता. मौन के क्षणों मे आप जहां बैठ गए वही तीथॆ बन जाते है. वही परमात्मा नाचने लगता है. मौन होना सीखें, यह मौन ही ध्यान है इसी ध्यान के क्षण मे आप परमात्मा
के साथ होते है.ऐ मेरे मालिक नज़रे करम मुझ पर इतना कर कि तेरी रहमतों के काबिल हो जाऊं, मुझे इतना पिला "नशा बंदगी का" कि मैं "भजन सिमरन का आदी हो जाऊं". हमेशा याद रखें कि मृत्यु हमारी ओर बढ़ रही है और हमें एक एक सांस का हिसाब देना पड़ेगा. सो "वक्त रहते भजन सिमरन करो".प्रेमी का प्रीतम से प्रेम इसी में है कि वह उसकी रजा और हुक्म में कोई आनाकानी न करे.
"सतगुरु की रज़ा और हुकुम सिर्फ़ एक ही है "भजन सिमरन".
सत्संग की अथवा मालिक की बातें करने का अर्थ है - कि हम पानी में पड़े हुए पत्थर हैं जो पानी में घुलते तो नहीं पर सूरज की तपिश से बचे ज़रूर रहते हैं. इसका यह कतई मतलब नहीं कि हमारी मालिक के दरबार में हाज़िरी लग रही है, हाज़िरी तो केवल तभी लगती है जब हम अपनी भजन सुमिरन की ड्यूटी पूरी करते हैं रोज़ रोज़ "भजन सिमरन करो जी".
No comments:
Post a Comment