Thursday, 7 September 2023

184 - अपने को छोडऩा कितना कठिन होता है ?

एक राजा था। उसने परमात्मा को खोजना चाहा। वह किसी आश्रम में गया। उस आश्रम के प्रधान साधु ने कहा, जो कुछ तुम्हारे पास है, उसे छोड़ दो। परमात्मा को पाना तो बहुत सरल है।

राजा ने यही किया। उसने राज्य छोड़ दिया और अपनी सारी सम्पत्ति गरीबों में बांट दी।  वह बिल्कुल भिखारी बन गया, लेकिन साधु ने उसे देखते ही कहा, अरे, तुम तो सभी कुछ साथ ले आये हो! राजा की समझ में कुछ भी नहीं आया, पर वह बोला नहीं। साधु ने आश्रम के सारे कूड़े-करकट का फेंकने का काम उसे सौंपा।

आश्रमवासियों को यह निर्णय बड़ा कठोर लगा, किन्तु साधु ने कहा, सत्य को पाने के लिए राजा अभी तैयार नहीं है और इसका तैयार होना तो बहुत ही जरूरी है। कुछ दिन और बीते। आश्रमवासियों ने साधु से कहा कि अब वह राजा को उसके कठोर काम से छुट्टी देने के लिए उसकी परीक्षा ले लें।

साधु बोला, अच्छा! अगले दिन राजा अब कचरे की टोकरी सिर पर लेकर गांव के बाहर फेंकने जा रहा था तो एक आदमी रास्ते में उससे टकरा गया।

राजा बोला, आज से पंद्रह दिन पहले तुम इतने अंधे नहीं थे। साधु को जब इसका पता चला तो उसने कहा, मैंने कहा था न कि अभी समय नहीं आया है। वह अभी वही है।

कुछ दिन बाद फिर राजा से कोई राहगीर टकरा गया। इस बार राजा ने आंखें उठाकर उसे सिर्फ देखा, पर कहा कुछ भी नहीं। फिर भी आंखों ने जो भी कहना था, कह ही दिया। साधु को जब इसकी जानकारी मिली तो उसने कहा, सम्पत्ति को छोडऩा कितना आसान है, पर अपने को छोडऩा कितना कठिन है।

तीसरी बार फिर यही घटना हुई। इस बार राजा ने रास्ते में बिखरे कूड़े को बटोरा और आगे बढ़ गया, जैसे कुछ हुआ ही न हो। उस दिन साधु बोला, अब यह तैयार है।

जो खुदी को छोड़ देता, वही प्रभु को पाने का अधिकारी होता है। सत्य को पाना है तो स्वयं को छोड़ दो। मैं से बड़ा और कोई असत्य नहीं है।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts