Monday, 16 October 2023

186 - जीवन में ठक-ठक तो चलती ही रहेगी।

एक आदमी घोड़े पर कहीं जा रहा था, घोड़े को जोर की प्यास लगी थी। कुछ दूर कुएँ पर एक किसान बैलों से "रहट" चलाकर खेतों में पानी लगा रहा था। मुसाफिर कुएँ पर आया और घोड़े को

रहट" में से पानी पिलाने लगा।

...पर जैसे ही घोड़ा झुककर पानी पीने की कोशिश करता, "रहट" की ठक-ठक की आवाज से डर कर पीछे हट जाता। फिर आगे बढ़कर पानी पीने की कोशिश करता और फिर "रहट" की ठक-ठक से डरकर हट जाता।

मुसाफिर कुछ क्षण तो यह देखता रहा, फिर उसने किसान से कहा कि थोड़ी देर के लिए अपने बैलों को रोक ले ताकि रहट की ठक-ठक बन्द हो और घोड़ा पानी पी सके। किसान ने कहा कि जैसे ही बैल रूकेंगे कुएँ में से पानी आना बन्द हो जायेगा, इसलिए पानी तो इसे ठक-ठक में ही पीना पड़ेगा।

ठीक ऐसे ही यदि हम सोचें कि जीवन की ठक-ठक (हलचल, काम-धंधे) बन्द हो तभी हम भजन, सन्ध्या, वन्दना आदि करेंगे तो यह हमारी भूल है। हमें भी जीवन की इस ठक-ठक (हलचल यानि काम-धंधों में से ही समय निकालना होगा, तभी हम अपने मन की तृप्ति कर सकेंगे, वरना उस घोड़े की तरह हमेशा प्यासा ही रहना होगा।

सब काम करते हुए, सब दायित्व निभाते हुए प्रभु सुमिरन में भी लगे रहना होगा, जीवन में ठक-ठक तो चलती ही रहेगी।



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